पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को बड़ा झटका देते हुए HRERA (हरियाणा रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी) के अधिकारियों को बकाया राशि वसूलने के अधिकार देने वाली अधिसूचना को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया है। कोर्ट ने इसे रियल एस्टेट अधिनियम, 2016 का उल्लंघन बताया है।
न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर और न्यायमूर्ति एचएस ग्रेवाल की खंडपीठ ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया और स्पष्ट किया कि HRERA के पास केवल जांच करने और मुआवजे की राशि तय करने का अधिकार है, लेकिन वसूली की प्रक्रिया राजस्व विभाग के माध्यम से ही की जानी चाहिए।
क्या था मामला?
हरियाणा सरकार ने 11 मई 2024 को एक अधिसूचना जारी की थी, जिसके तहत HRERA अधिकारियों को जुर्माना, ब्याज और मुआवजा वसूलने के अधिकार दिए गए थे — बिलकुल कलेक्टर की तरह। सरकार का मकसद था कि वसूली प्रक्रिया तेज हो और आदेशों का सख्ती से पालन हो।
वाटिका लिमिटेड नामक रियल एस्टेट कंपनी ने इस अधिसूचना को अदालत में चुनौती दी। याचिका में तर्क दिया गया कि HRERA को ऐसे अधिकार देना कानून के खिलाफ है और इससे अधिकारियों के द्वारा मनमानी की आशंका बढ़ती है।
कोर्ट के अहम निर्देश और टिप्पणियाँ:
- HRERA अधिकारी केवल आदेश दे सकते हैं, वसूली नहीं कर सकते।
- वसूली केवल हरियाणा भूमि राजस्व अधिनियम, 1887 के तहत ही हो सकती है।
- राजस्व विभाग को विशेष अधिकारी नियुक्त कर वसूली करानी होगी।
- सरकार को वसूली प्रक्रिया को कानूनी ढांचे के अनुरूप ढालने के निर्देश।
- सिंगल बेंच के पुराने फैसले को भी गलत ठहराया, जिसमें HRERA के आदेशों को कोर्ट के आदेश जैसा माना गया था।
सरकार के तर्कों को किया खारिज
कोर्ट ने राज्य सरकार के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि हरियाणा भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 27 के तहत HRERA को वसूली के अधिकार दिए जा सकते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्रवर्तन और न्यायनिर्णयन दो अलग प्रक्रियाएं हैं, जिन्हें मिलाना कानून का उल्लंघन होगा।
अब आगे क्या?
इस फैसले के बाद अब हरियाणा सरकार को अपनी वसूली नीति को दोबारा बनाना होगा। HRERA को भी अपनी भूमिका सीमित करनी होगी और मामलों की वसूली के लिए राजस्व अधिकारियों पर निर्भर रहना होगा।