पाकिस्तान में 24 घंटे में 7 फीट कम हुआ चिनाब का पानी, भारत ने दो बांध बंद किए, 3 करोड़ लोगों पर असर

भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर स्थित चिनाब नदी पर बने सियाल और बगलिहार बांधों के फ्लडगेट्स बंद करने के फैसले से पाकिस्तान में जल संकट की स्थिति बनती दिख रही है. जानकारी के अनुसार, इस कदम के बाद पाकिस्तान की ओर बहने वाले पानी का प्रवाह 22 फीट से घटकर 15 फीट रह गया है.

इस बदलाव का सबसे अधिक असर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के 24 प्रमुख शहरों पर पड़ सकता है, जहां की आबादी का बड़ा हिस्सा पीने के पानी और सिंचाई के लिए चिनाब पर निर्भर है.

भारत की कार्रवाई के पीछे सुरक्षा कारण

सूत्रों के मुताबिक, यह कदम भारत सरकार द्वारा 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद उठाया गया है. हमले में 26 लोगों की जान गई थी और इसके बाद से भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में कुछ कड़े निर्णय लिए गए हैं. सिंधु जल संधि, जो 1960 से लागू है, उसी के तहत मिलने वाले पानी की आपूर्ति को “अस्थायी रूप से रोका गया” बताया जा रहा है.

 

पाकिस्तान में गहराता जल संकट

पाकिस्तानी जल संसाधन विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह स्थिति लंबे समय तक बनी रही, तो खरीफ सीजन की फसलों में लगभग 20-25% तक की पानी की कमी देखी जा सकती है. साथ ही, फैसलाबाद और हाफिजाबाद जैसे बड़े शहरों की पेयजल आपूर्ति भी प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है.

पाकिस्तानी नेताओं की तीखी प्रतिक्रिया

भारत के इस निर्णय के बाद पाकिस्तान के कई प्रमुख राजनेताओं ने तीखी प्रतिक्रियाएं दी हैं:

  • बिलावल भुट्टो, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता, ने एक जनसभा में कहा कि “सिंधु का पानी हमारा हक है, और इसकी सुरक्षा के लिए हर संभव कदम उठाया जाएगा.”
  • विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने चेतावनी दी कि भारत की ओर से किसी नए डैम के निर्माण पर पाकिस्तान ‘उचित जवाब’ देगा.
  • वहीं प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भारत पर “तनाव बढ़ाने की नीयत से लिए गए निर्णयों” का आरोप लगाया.

संधि का इतिहास और मौजूदा स्थिति

1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई सिंधु जल संधि के तहत, भारत को तीन पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास, सतलुज) और पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) के जल का उपयोग दिया गया था. यह संधि अब तक कई युद्धों के बावजूद बरकरार रही है.

लेकिन हालिया घटनाओं ने इस समझौते की स्थिरता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है. भारत का कहना है कि जब तक सीमा पार आतंकवाद पर कार्रवाई नहीं होती, तब तक वह “संधि की उदारता” को लेकर पुनः विचार कर सकता है.

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