चंडीगढ़ की फर्नीचर मार्केट पर चला बुलडोजर, 116 दुकानें जमींदोज

पंजाब और हरियाणा की राजधानी चंडीगढ़ की सबसे बड़ी फर्नीचर मार्केट में रविवार सुबह बड़ी कार्रवाई की गई। फर्नीचर मार्केट की दुकानों पर बुलडोजर चलाकर ढहा दिया गया। इस मौके पर बड़ी संख्या में पुलिस जवानों को सुरक्षा के लिहाज से तैनात किया गया था। सेक्टर-53/54 स्थित फर्नीचर मार्केट में छोटी-बड़ी लगभग 116 फर्नीचर की दुकानें थी, जिनपर प्रशासन ने बुलडोजर चलाकर इन्हें जमींदोज कर दिया।

प्रशासन ने पहले ही इस मार्केट को हटाने का आदेश जारी किया था। ऐसे में अधिकांश दुकादारों ने अपना सामान पहले ही निकाल लिया था। इस कार्रवाई के दौरान दोनों तरफ से सड़कों को बंद कर दिया गया था और ट्रैफिक को डायवर्ट किया गया है। सुरक्षा के लिहाज से भारी पुलिस बल मौके पर तैनात किया गया है।

 

फर्नीचर मार्केट के दुकानदारों ने प्रशासन से वैकल्पिक स्थान देने की मांग की थी लेकिन इस मांग को एस्टेट ऑफिसर ने खारिज कर दिया। दरअसल, जिस जमीन पर ये दुकानें चल रही हैं, उसे वर्ष 2002 में अधिगृहीत कर लिया गया था। कुल 227.22 एकड़ भूमि (जिसमें कजहेड़ी गांव की 114.43 एकड़, बड़हेड़ी गांव की 69.79 एकड़ और पलसौरा गांव की 43 एकड़ जमीन शामिल है) को सेक्टर-53, 54 और 55 के तीसरे चरण के विकास के लिए अधिगृहीत किया गया था। इस अधिग्रहण के बदले मूल जमीन मालिकों को मुआवजा और बढ़ा हुआ मुआवजा दोनों ही दिया जा चुका है।

 

15 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा

प्रशासन के अनुसार फर्नीचर मार्केट के दुकानदारों ने करीब 15 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा कर रखा है। 22 जून 2024 को प्रशासन ने दुकानदारों को नोटिस जारी कर एक हफ्ते में अपनी दुकानें खुद हटाने और जमीन खाली करने का निर्देश दिया था। अब रविवार को प्रशासन सेक्टर 53-54 की जमीन को खाली कराने के लिए अभियान चलाएगा। इस दौरान भारी पुलिस बल की भी तैनाती रहेगी। कुछ दिन पहले भी दुकानें खाली करने की मुनादी कराई गई थी।

 

सरकारी जमीन पर कब्जा, आवंटन में प्राथमिकता नहीं

एस्टेट ऑफिसर-कम-डीसी ने 9 जनवरी 2025 को आदेश जारी कर सेक्टर-53 और 54 में फर्नीचर व्यवसाय से जुड़े व्यक्तियों को भूमि आवंटन में विशेष प्राथमिकता देने की मांग को खारिज कर दिया था। प्रशासन के अनुसार, जिस भूमि पर यह व्यवसाय चल रहा है, उसे 14 फरवरी 2002 को अधिगृहीत किया गया था और इसका अधिग्रहण सेक्टर-53, 54 और 55 के विकास के लिए किया गया था। हालांकि, कारोबारियों का दावा है कि उनकी दुकानें 1986 से यहां स्थापित हैं।

 

प्रशासन ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2020 के इंदौर डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाम मनोहरलाल मामले के फैसले का हवाला दिया है। इसके अनुसार सरकारी भूमि पर अवैध रूप से व्यवसाय करने वालों को अतिक्रमणकारी माना जाएगा और उन्हें भूमि आवंटन में कोई प्राथमिकता नहीं दी जाएगी।

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