सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के कुछ प्रमुख प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगाने का प्रस्ताव रखा, जिनमें केंद्रीय वक्फ परिषद और वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना, वक्फ संपत्तियों पर विवादों का फैसला करने में कलेक्टरों की शक्तियां और अदालतों द्वारा वक्फ घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने के प्रावधान शामिल हैं। हालांकि इस संबंध में कोई आदेश जारी नहीं किया। शीर्ष अदालत ने अंतरिम फैसले को केंद्र सरकार के आग्रह पर अंतिम समय में ‘होल्ड’ पर रख लिया। सर्वोच्च अदालत ने इस कानून के संदंर्भ में तीन प्रमुख सवाल उठाए थे, जिनका जवाब देने के लिए सरकार ने समय मांगा। प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी. संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ इस मामले में गुरुवार को दोपहर दो बजे फिर सुनवाई करेगी।
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता के खिलाफ दायर की गई 100 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है। शीर्ष अदालत ने इन याचिकाओं को हाईकोर्ट को सौंपने पर भी मंथन किया। हालांकि, उन्होंने कपिल सिब्बल, अभिषेक सिंघवी, राजीव धवन और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित वरिष्ठ वकीलों की विस्तृत दलीलें सुनी और तीन सूत्रीय अंतरिम आदेश जारी करने पर विचार किया।
सीजेआइ बोले, संरक्षित रहेंगे स्मारक
कपिल सिब्बल ने जामा मस्जिद का मुद्दा भी उठाया। सीजेआइ ने कहा कि जामा मस्जिद समेत सभी प्राचीन स्मारक संरक्षित रहेंगे। इस बारे में कानून आपके पक्ष में है।
नए कानून से जुड़े इन तीन प्रमुख मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने बहस के दौरान कानून से जुड़े तीन प्रमुख मुद्दों का जिक्र किया। पहला है वक्फ बाय यूजर का मुद्दा, दूसरा है वो प्रावधान, जिसमें उन संपत्तियों को वक्फ नहीं माना जाएगा यदि उस पर सरकारी भूमि होने का दावा किया जाता है। तीसरा प्रावधान है वक्फ काउंसिल और वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की प्रधानता।
पहला मुद्दा, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर की वो है ‘वक्फ बाय यूजर’।
बुधवार को सुनवाई के दौरान अभिषेक मनु सिंघवी लगातार ‘वक्फ बाय यूजर’ संपत्ति का जिक्र कर रहे थे। अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में दलील दी कि देशभर में 8 लाख वक्फ संपत्तियां हैं, जिनमें से आधी यानी 4 लाख से अधिक प्रॉपर्टी ‘वक्फ बाय यूजर’ के तौर पर रजिस्टर है। सिंघवी ने आगे दलील दी और इस बात को लेकर चिंता जताई कि वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधन के बाद इन संपत्तियों पर खतरा उत्पन्न हो गया है।
अब समझते हैं ये प्रावधान क्या है। दरअसल, ‘Waqf By User’ एक परंपरा है, जिसमें कोई संपत्ति लंबे समय तक इस्लामिक धार्मिक या परोपकारी उद्देश्यों के लिए प्रयुक्त होने के कारण वक्फ मानी जाती है, भले ही उसके पास लिखित दस्तावेज या रजिस्ट्री न हो।
कपिल सिब्बल ने कहा,‘वक्फ बाय यूजर’ वक्फ की एक शर्त है। इसको ऐसे समझिए कि मेरे पास एक प्रॉपर्टी है और मैं चाहता हूं कि वहां एक अनाथालय बनवाया जाए, तो इसमें समस्या क्या है? मेरी जमीन है, मैं उस पर बनवाना चाहता हूं, ऐसे में सरकार मुझे रजिस्टर्ड कराने के लिए क्यों कहेगी?
दूसरा मुद्दा: वक्फ संपत्ति का दर्जा खत्म करना
बता दें कि नए कानून के तहत, यदि जिला कलेक्टर किसी संपत्ति को सरकारी जमीन के रूप में पहचानता है, तो वह वक्फ संपत्ति नहीं मानी जाएगी, जब तक कि कोर्ट इसका अंतिम निर्णय न दे। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान पर आपत्ति जताई और कहा कि कलेक्टर की जांच के दौरान संपत्ति का वक्फ दर्जा खत्म नहीं होना चाहिए।
कोर्ट ने आगे प्रस्ताव दिया कि कलेक्टर जांच कर सकता है, लेकिन उसका प्रभाव तब तक लागू नहीं होगा, जब तक कि अंतिम निर्णय न हो।
तीसरा मुद्दा: वक्फ बोर्ड और काउंसिल में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति
दरअसल, नए कानून में वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ काउंसिल में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान है, जिसे कोर्ट ने धार्मिक स्वायत्तता के खिलाफ माना।
कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल पूछा, “क्या आप हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने की अनुमति देंगे?” कोर्ट ने सुझाव दिया कि बोर्ड और काउंसिल के स्थायी सदस्यों को मुस्लिम होना चाहिए, हालांकि एक्स-ऑफिशियो सदस्य गैर-मुस्लिम हो सकते हैं।